दिमागी फ़ितूर:देह सुख
रात के कुछ 11 बज रहे होंगे खाना खाके बिस्तर पे आया ही था..आदतन मोबाइल पे फेसबुक पेज स्क्रॉल किये जा रहा था कुछ को चाह कर लाईक कर रहा था तो कुछ को ना चाहते हुए भी..
अचानक एक पोस्ट पे नजर परी जिसे मैं बहुत उत्सुकता से पढने लगा पढ़ते पढ़ते न जाने मैं कब उस पोस्ट से डिसकनेक्ट होकर खुद से उलझ बैठा पता ही नही चला..
"क्या हम इंसान पशु हो गये हैं जहाँ स्त्री बस मादा है पुरुष सिर्फ नर !(पशु भी ऐसे कहाँ होते हैं!) कैसे कोई बिना मन से जुड़े किसी के साथ देह बाँट सकता है,कैसे ? क्या हम उसे सुबह होते ही भूल सकते हैं, जिसके साथ रात गुजारी हो| 'मैंने तो पढ़ा है-हर स्पर्श आत्मा की किताब में दर्ज हो जाता है और इंसान उसे जीते -जी नही भूल सकता है | पर हाई सोसाइटी में ऐसी बातें गंवारपन है | क्या भावनाओं का कोई महत्व नहीं| हम कहाँ जा रहे हैं?
हम अपनी आज की पीढ़ी को कैसे समझाये? कैसे कहें की वासना की आग में जितना घी डालो वह उतनी ही तेजी से भभकती है|इच्छाओं का कोई अंत नही| क्यों पुरुष अलग-अलग तरह की स्त्रियों का सुख भोगना चाहता है ? क्या सभी स्त्रियाँ देह के स्तर पर एक सी नहीं है| अलग-सा सुख बस दिमाग का फितूर है| दिमाग में बनी एक भ्रामक ग्रंथि है| उससे अपने समाज को बचाना होगा| आजकी पीढ़ी का यह भ्रम तोडना होगा की भटकाव में सुख है| दरअसल हम भूल रहे हैं की सुख देह में नही मन में होता है| मजा बदलाव में नही, अपनेपन में महसूस होता है| यही सब सोचते-सोचते जाने कब आँख लग गयी पता ही नहीं चला| सुबह आँख खुली तो वही ऑफिस की तैयारियों में व्यस्त...ऑफिस पहुँच के कुछ जरुरी काम निपटाने के पश्चात सोचा आप सबके बिच अपने मन की उथल पुथल को रखूं | क्या पता मेरे मन की यह उथल पुथल कईयों की मन की उथल पुथल को शांत करदे|
अपनी राय जरुर दें हमें इन्तेजा रहेगा |
#हिंदी_ब्लॉगिंग
रात के कुछ 11 बज रहे होंगे खाना खाके बिस्तर पे आया ही था..आदतन मोबाइल पे फेसबुक पेज स्क्रॉल किये जा रहा था कुछ को चाह कर लाईक कर रहा था तो कुछ को ना चाहते हुए भी..
अचानक एक पोस्ट पे नजर परी जिसे मैं बहुत उत्सुकता से पढने लगा पढ़ते पढ़ते न जाने मैं कब उस पोस्ट से डिसकनेक्ट होकर खुद से उलझ बैठा पता ही नही चला..
"क्या हम इंसान पशु हो गये हैं जहाँ स्त्री बस मादा है पुरुष सिर्फ नर !(पशु भी ऐसे कहाँ होते हैं!) कैसे कोई बिना मन से जुड़े किसी के साथ देह बाँट सकता है,कैसे ? क्या हम उसे सुबह होते ही भूल सकते हैं, जिसके साथ रात गुजारी हो| 'मैंने तो पढ़ा है-हर स्पर्श आत्मा की किताब में दर्ज हो जाता है और इंसान उसे जीते -जी नही भूल सकता है | पर हाई सोसाइटी में ऐसी बातें गंवारपन है | क्या भावनाओं का कोई महत्व नहीं| हम कहाँ जा रहे हैं?
हम अपनी आज की पीढ़ी को कैसे समझाये? कैसे कहें की वासना की आग में जितना घी डालो वह उतनी ही तेजी से भभकती है|इच्छाओं का कोई अंत नही| क्यों पुरुष अलग-अलग तरह की स्त्रियों का सुख भोगना चाहता है ? क्या सभी स्त्रियाँ देह के स्तर पर एक सी नहीं है| अलग-सा सुख बस दिमाग का फितूर है| दिमाग में बनी एक भ्रामक ग्रंथि है| उससे अपने समाज को बचाना होगा| आजकी पीढ़ी का यह भ्रम तोडना होगा की भटकाव में सुख है| दरअसल हम भूल रहे हैं की सुख देह में नही मन में होता है| मजा बदलाव में नही, अपनेपन में महसूस होता है| यही सब सोचते-सोचते जाने कब आँख लग गयी पता ही नहीं चला| सुबह आँख खुली तो वही ऑफिस की तैयारियों में व्यस्त...ऑफिस पहुँच के कुछ जरुरी काम निपटाने के पश्चात सोचा आप सबके बिच अपने मन की उथल पुथल को रखूं | क्या पता मेरे मन की यह उथल पुथल कईयों की मन की उथल पुथल को शांत करदे|
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3 comments:
आपकी बात का उत्तर आपकी इसी पंक्ति में है -कुछ को चाहकर कुछ को न चाहते हुए भी लाइक किये जा रहा था, कोई भी कार्य शुरू करना चाहा शुरुआत खुद से होती है ,हम तभी सबमें सुधार की उम्मीद कर सकते हैं, सबके साथ यही परेशानी होती है ,सुधार करना सब चाहते हैं सुधरना कम ... देह से परे भी बहुत कुछ है जिस पर चिंतन जरूरी है ...
अच्छा सवाल उठाया ...
शुक्रिया..सही कहा आपने शुरुआत खुद से की जानी चाहिए तभी हम दूसरों से उम्मीद कर सकते हैं..हमने अपनी तरफ से शुरुआत बहुत पहले कर रखी है देह सुख से ऊपर उठकर सोचने और उसपर पहल करने की कोशिश में जुटे हैं..आपकी प्रतिक्रिया ने मुझे एक बल दिया है अपनी इस आवाज को और बुलंद करने की..
#हिंदी_ब्लॉगिंग zindabad, subah ki shuruaat kisi achchhaa kaam se krni chahiye, mandir bhi jati....socha kisi blog pr chla jaye.saamne muskraate hue tum aur tumhara blog dikh gayaa.school ke liye taiyar hona hai 😄 Shaam Ko aaungi. :P
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