Friday 4 August 2017

एक मुहिम:इंसान बनने की

सुबह-सुबह हम इंसान किसी मासूम बच्चे की भांति होते हैं। निश्छल और निस्वार्थ मन,ना कोई लोभ ना कोई मोह,सुबह सो के उठा हुआ इंसान मानो ऐसा लगता है जो अभी अभी आया हो इस दुनिया में जिसे इस दुनिया के किसी परपंच से कोई लेना देना ना हो... पर ज्यों ज्यों सुबह दिन की तरफ बढ़ने लगती है।हम फसने लगते हैं सांसारिक मोह माया में छल,कपट,चाटुकारिता इन सबसे से घिरने लगते हैं।

निश्छल और निस्वार्थ मन किसे नही भाता पर आज बहुत मुश्किल से मिलते हैं ऐसे लोग..मिले भी कैसे कहाँ सहज है निश्छल और निस्वार्थ मन के साथ जीना जब हर तरफ स्वार्थ की एक अंधी दौड़ चल रही हो!
स्वार्थ एक छूत बीमारी की तरह है जो देखा देखी बढ़ता चला जा रहा है। हर किसी की दलील है अगर सामने वाला स्वार्थी है तो मैं क्यूँ न बनूँ स्वार्थी! और इस तरह से ये फैलता जा रहा है। हम सब इसके चपेट में है जाने अनजाने..

आज फेसबुक पे आये दिन कोई न कोई अभियान चलता रहता है। उन मुहिम चलाने वालों से आग्रह है क्या ये मुमकिन नहीं एक मुहिम इंसान बनने की भी चलाई जाए जहां ना कोई स्त्री होगी न कोई पुरुष ना कोई छोटा होगा ना कोई बड़ा,ना कोई अमीर ना कोई गरीब ना कोई शिक्षित होगा ना कोई अशिक्षित,हो तो सिर्फ इंसान..!

बस यही सवाल पूछता है मेरा मन हर वक़्त मुझसे क्या ऐसी कोई मुहिम मुमकिन है?

#Nandan_jha

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एक मुहिम:इंसान बनने की

सुबह-सुबह हम इंसान किसी मासूम बच्चे की भांति होते हैं। निश्छल और निस्वार्थ मन,ना कोई लोभ ना कोई मोह,सुबह सो के उठा हुआ इंसान मानो ऐसा लगता ...