Thursday 27 July 2017

कोई उसे छूकर क्यों नही देखता!!

कोई उसे छूकर क्यों नही देखता,उसके स्पर्श में भी उतनी ही कोमलता है जितनी किसी खुबसूरत लड़की की स्पर्श में...वह प्यार देना चाहती है..स्वयं को उजाड़कर ढेर-ढेर सारा...

...काजल के अन्दर का रहा सहा आत्म विस्वास भी एक तरह से समाप्त हुआ जा रहा था| वह किसी योग्य नहीं| उसे कभी कोई नही अपनाएगा| अक्सर वह बाथरूम में नहाते हुए रोटी है,इतना धीरे की कोई सुन न सके ,मुझे भी प्यार चाहिए,अपना घर,अपना परिवार चाहिए...!!
पर कहाँ काजल की किस्मत औरों लड़कियों जैसी कहाँ थी भगवान् ने उसके नाम के तरह ही उसे काजल जैसा जो बनाया था..हाँ सही सोच रहे हैं आप वो काली(सांवली) है बिलकुल अपने नाम की तरह...!
वह जहाँ भी जाती है, उसका अभी तक विवाह न हो पाना ही मुख्य मुद्दा बना रहता है| उसके साथ की की लडकियां एक एक करके ब्याही जा चुकी थी| शादी के कुछ महीनों बाद ही वे अक्सर गर्भवती होकर अपने मायके लौट आती थी| उनके निखरे चेहरे,सुहाग-रात की कहानियाँ,गर्व,तुष्टि से आप्ल्वित रूप..इन बातों से एक तरह से उसे वितृष्णा ही हो गयी है| उसे लगता है मानो सब जानबूझकर उसका दिल दुखाने के लिए ही अपने सौभाग्य और भरी पूरी गृहस्थी की कहानी उसके सामने सुनाते रहते हैं| अपने सुख की ढेर साड़ी बात बताकर वे चेहरे पे सहानुभूति के कृत्रिम भाव ओढ़कर उससे पूछते..और तेरा कुछ हुआ???जो जग जाहिर है,उसका जवाब देना वह जरुरी नही समझती..!!
एक सांवले शारीर की कैद में मन का सारा उजलापन भी धीरे –धीरे धूसर पड़ता जा रहा है| गुजरते हुए समय के साथ मन का सोना देह की माती में दवा पड़ा अपना चमक खोता जा रहा है..मगर इस माती की दुनिया को माती का ही मोह है,स्नेह,सवेदना जैसी चीजों का कोई मोल नही..कोई उसे अपनाने,मांजने को तैयार नही होता|
मगर अपनी मैली तवचा के निचे वह भी उतनी ही इंसान है जितनी गोरी रंगतवाली लडकियां| उसके सपने,उसकी इच्छाएं उसका मन सिर्फ काली(सांवली) होने की वजह से दूसरों से अलग नही हो जाता| कोई उसे छूकर क्यों नही देखता,उसके स्पर्श में भी उतनी ही कोमलता है जितनी किसी खुबसूरत लड़की की स्पर्श में होती है| उसकी साँसों में वही हरारत है,वही चाहना जो एक सुन्दर शारीर की मालिक के पास होती है| कोई उसकी आँखों में झांके तो!! सुने तो उसकी मूक चावनी की भाषा..वह प्यार देना चाहती है..स्वयं को उजाड़कर ढेर-ढेर सारा..कोई बस ले ले उसे..सब रह गया है उसके भीतर..पहाड़ बनकर..स्नेह,करुणा.कामनाएं,इस मैले कुचले,असुंदर शारीर के भीतर वह दबकर रह गयी है..मकबरा बन गया है यह सांवला रूप उसकी आत्मा का,जिसका कोई रंग नही होता,होती है बस अरूप संवेदनाएं,जिसका कहीं कोई दाम नहीं...
वह अकेले में पड़ी पड़ी सोचती है,जिंदगी अब बाज़ार में पड़ी हुई एक वास्तु मात्र है,उसी के हाथों रेहान चढ़कर रह गया है| इंसान को कैसा होना चाहिए,यह यही बाज़ार तय करता है| दुनिया कैसी है,यह बात नही,दुनिया कैसी होनी चाहिए,यह बात अहम् हो गयी है.| और यह बात बताती है लोगों को कोई और नहीं यही बाज़ार..बड़ी-बड़ी बहु राष्ट्रिय कम्पनियां अपने तरह तरह के उत्पादों के विज्ञापन के जरिये..यह कम्पनियां तय करती है,इंसान को कैसा दिखना चाहिए,कैसे उठाना बैठना चाहिए,कैसे जीना चाहिए...सुबह से लेकर रात तक हर बात,हर काम के लिए इनका मशविरा लेकर चलना जरुरी हो गया है| वर्ना आज के दौर में पिछड़ जाने का दर है और यह कोई भी नही चाहता| सभी कोई अप तू डेट और ट्रेंडी बने रहना है|
यह सह्रदय,अछि प्रसाधन कंपनिया बताती है,आज की औरत को गोरी,खुबसूरत,जीरो फिगर की होनी चाहिए,जिसके बल रेशमी,मुलायम और रंगीन हो,पलके मस्कारा लगाकर घनी,लम्बी हो,होंठ इस रंग के हों और गाल उस रंग के हों| वह डिज़ाइनर अंडर गारमेंट पहने और सुबह किसी अमुक कंपनी का कॉर्न फ्लैक अमुक स्किम्ड मिल्क के साथ करे तभी उसकी शादी होगी,तभी उसे कॉर्पोरेट कंपनियों में गलेमरस नौकरी मिलेगी,उसके बच्चे गोल मटोल और हाई आईक्यू वाले पैदा होंगे तथा पति मिलेगा गुड लूकिंग,हैंडसम और बेहद प्यार करने वाला जो उसे अक्षय तिर्तिया तथा धन तेरस के अवसर पर हीरों का हार दिलवाएगा तथा मारिसस में हॉलिडे करवाते हुए प्रेम के लिए चोकलेट फ्लेवर वाले कंडोम का इस्तेमाल करेगा| इसे वो एक्स फैक्टर का नाम देते हैं| यह एक्स फैक्टर का होना सबके लिए बहुत जरुरी हो गया है|
वह उदास हो जाती है जब भी वह सोचती है,उसने सब कुछ तो इस्तेमाल किया गोरेपन की क्रीम,शैम्पू,साबुन,टूथ पेस्ट..सब कुछ!! फिर भी वह अब तक वही की वही क्यों बनी हुई है..सांवली,सपाट,असुंदर..
विज्ञापन तो चिल्ला चिल्लाकर यही बताता है की किसी के पास अपना कुछ होने की जरुरत नही| सब कुछ बाज़ार में उपलब्ध है,बस जाओ और उठाकर ले आओ..चेहरा फिगर,प्रेम और भावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति,रिश्ते और रिश्तों की जमा पूंजी..कोई चाय लोगों को अन्याय,भ्रष्टाचार के खिलाप लड़ने की प्रेरणा देता है है तो कोई सुगंध इन्सान में प्रेम की इच्छा जगती है| उसने तो उनकी साडी बात मानी..या यूँ कहो माननी पड़ी,उनपर अम्ल भी किया इन सबके बाबजूद सब मृग-मरीचिका ही तो निकला..सोने का हिरण!!
यही सब सोचते सोचते काजल जी भर के रोती है..फिर खुद ही चुप हो जाती है अपने भाग्य को कोसते हुए..!
पर ये किसी एक काजल की कहानी नही है..हमारे आस पास ऐसे ढेरों काजल है जिनकी व्यथा हम कहाँ समझ पाते हैं| हमे तो खुबसूरत गर्लफ्रेंड चाहिए बीवी चाहिए..हर माँ को सुन्दर बहु चाहिए..पर उनके बारे में कौन सोचेगा?? जो खुद जान बुझकर काली या सांवली पैदा नही होती..!!

Nandan Kumar Jha

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